सियासी दलों ने मुद्दे से मोड़ा मुंह जबकि 2011 में अमर सिंह ने लोकमंच के वैनर तले अलग पूर्वांचल के लिए की थी पदयात्रा
देवरिया(बरहज)- अलग पूर्वांचल राज्य की मांग को लेकर कई आंदोलन होते रहे हैं। वर्ष 2011 में सपा के राष्ट्रीय महासचिव अमर सिंह ने अपनी लोकमंच पार्टी के वैनर तले अलग राज्य की मांग को लेकर पदयात्रा की थी। मुख्यमंत्री रही मायावती ने भी अलग राज्य के लिए प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। लेकिन 2016 के चुनाव से अब तक के चुनावों में सियासी दल इस मुद्दे से अलग दिखे हैं। अब अलग राज्य की मांग पीछे छूटती हुई दिख रही है।
उत्तर प्रदेश भारत का क्षेत्रफल एवं आबादी की दृष्टी से एक बड़ा राज्य है। इसके पूर्वी छोर पर स्थित पांच मंडलों के 17 जिले पूर्वाचल में आते हैं। भौगोलिक, भाषायी एवं सामाजिक रचना को देखते हुए यह एक विशिष्ट क्षेत्र है। यहां मुख्य रूप से भोजपुरी बोली जाती है,पूर्वी जिलों से पूर्वांचल राज्य बनाने का प्रस्ताव है। पूर्वांचल की मांग काफी अर्से से की जा रही है। बुन्देलखण्ड के बाद पूर्वांचल यूपी का दूसरा पिछड़ा इलाका है। सवाल तो यह भी होता है कि क्या अलग पूर्वांचल राज्य बनने से इसकी समस्याएं दूर हो जायेगी। गैंगवार, वसूली, तस्करी, डग, स्वच्छ पेयजल,चीनी मिलों का बंद होना,बेरोजगारी,विकास की कमजोर गति, प्रोफेशनल शिक्षा, बाढ़ की समस्या आज भी यहां के लिए अभिषाप बनी हुई है।औद्योगिक विकास बहुत कम है। खेतों का छोटा होता आकार, परिवार के भरण पोषण के लिए नाकाफी है। यही कारण है कि यहां से बड़ी संख्या में लोग पलायन करते हैं। करीब एक दशक पूर्व अलग राज्य का मुद्दा खूब गूँजा। आने वाले समय मे 2027 का चुनाव होना है लेकिन सामाजिक संगठनों से लेकर राजनीतिक दलों की जुबान बंद है।
क्या कहते हैं लोग ⬇️
कपरवार निवासी किसान राणा प्रताप सिंह कहते हैं कि विविधता को समेटे हैं पूर्वांचल
पूर्वांचल राजनीतिक उपेक्षा का शिकार रहा है। यहीं कारण है कि पश्चिम की अपेक्षा यहां विकास की गति धीमी है। बौद्व सर्किट, गोरक्षनाथ मंदिर, बनारसी पान, संगम, पूर्व प्रधानमंत्री की चंद्रशेखर का बलिया भी इसी पूर्वांचल में है। ऐसे में अलग पूर्वांचल राज्य ही यहां की समस्या को खत्म कर सकता है।
अलग राज्य से रूकेगा पलायन
सामाजिक कार्यकर्ता श्रवण कुमार गुप्ता कहते है कि पूर्वांचल,औद्योगिक पिछड़ेपन और चीनी मिलों के बंद होने से रोजगार विहीन हो गया है। ऐसे में अलग राज्य से ही यहां औद्योगिक विकास संभव है। उच्च और प्रोफेशनल कोर्सों की पढ़ाई के लिए बच्चों को दिल्ली, नोएडा जैसी जगहों पर जाना पड़ता है। यह आम आदमी के लिए आसान नहीं है।
स्वास्थ्य सेवा का घोर अभाव
सामाजिक कार्यकर्ता अनिल निषाद का दुख बेहद गम्भीर है कहते हैं कि वर्षों बाद के भी यहाँ इलाज का प्रबंध नहीं हो सका है। गंभीर रोगों के इलाज के लिए लोगों को बाहर जाना पड़ता है जहाँ महंगा उपचार होता है, राजनीतिक दलों ने भी यहां की उपेक्षा की है।
प्रस्तावित पूर्वांचल राज्य में बसपा सरकार ने 21 जिलों को मिलाकर अलग पूर्वांचल राज्य का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा। कुछ लोग पांच मंडलों के 17 जिलों को मिलाकर पूर्वांचल बनाने की मांग करते रहे हैं। वाराणसी, इलाहाबाद, आजमगढ़, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, मिर्जापुर, जौनपुर, गाजीपुर, मऊ, बलिया, बस्ती, गोरखपुर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर, देवरिया, संतकबीरनगर,बहराइच, श्रावस्तवी, चंदौली, सोनभद्र जिले शामिल थे जिनमे 32 लोक सभा और 150 विधानसभा सीटों की करीब 7 करोड़ 65 लाख आबादी निवास करती है।