पूर्वांचल में छह सौ सैनिकों का प्रमुख गढ़ था पैना

395 बलिदानियों  87 वीरांगनाओं ने सरयू ने लगा दी थी छलांग

श्रवण गुप्ता- (सह संपादक)

देवरिया (बरहज): मझौली के युद्ध में पैना के रणबाकुरों का अतुलनीय योगदान था। कर्नल रूक्राफ्ट की योजना विद्रोही फौजों पर सोहनपुर में आक्रमण करने की थी। कर्नल रूक्राफ्ट पैना की तबाही करने के बाद 26 दिसंबर 1857 को विद्रोही सैनिकों को दबाने के लिए आगे बढ़ा। ग्राम सोहनपुर में कुंवर सिंह के चचेरे भाई हरिकृष्ण सिंह, पैना के ठाकुर सिंह,पल्टन सिंह,राजा सतासी,डुमरी के बन्धु सिंह, गहमर के मेघन सिंह अपनी अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ 17वीं नेटिव आर्मी के सिपाही जो नाजिम मोहम्मद की सेना में शामिल हो चके थे, सभी सोहनपुर में एकत्र थे। नायक नाजिम मुशर्रफ खां अपनी सेना और पटना के मौलवी अब्दुल कलीम के साथ मौजूद थे। 1200 नेटिव आर्मी के सिपाही व अन्य करीब चार हजार हथियार बंद लोग मिलकर ब्रिटिश फौज के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिए। गोरखा फौज रामपुर रेजिमेंट के सूबेदार हिमकुमल वसानिया घायल हो गए। लेफ्टिनेंट बर्ल्टन बाल बाल बच गए। यह सुबह 10 बजे से 1.30 बजे तक चला। इसमें 120 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। मझौली की लड़ाई के बाद अंग्रेज सेना गोरखपुर में प्रवेश कर पाई थी। नाजिम मुशर्रफ खां को गोरखपुर में फंसी दे दी गई। नरहरपुर के राजा हरिप्रसाद सिंह अपने प्रिय हाथी जयमंगल पर सवार होकर कहीं चले गए। सतासी के राजा उदयप्रताप सिंह को पकड़ कर अंडमान भेजकर फांसी दे दी गई। पैना से जाते समय जीउत मिश्र को गोली मार दी गई। श्रीकृष्ण मिश्र जिन्होंने कैप्टन सहित नौ अंग्रेजी सैनिकों को मार दिया था उनके दोनों हाथ का पंजा काट लिया गया। पैना के विद्रोहियों के गिरफ्तारी का प्रयास की लेकिन कामयाब नहीं हो सकी।

शहीद स्मारक जो आज भी घटना की याद दिलाता है

31.07.1858 को 85 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए

सामूहिक जौहर, उफनती नदी में कूदकर सतीत्व की रक्षा,एवं अग्नि कुंड मे 100 नारियों ने जौहर किया
गांव में बच्चे, वृद्ध, नर/नारियां मिलाकर पूरे 200 लोगो ने राष्ट्रहित के लिए प्राण न्योछावर किये थे
मझौली (मैरवा) के युद्ध में 10 लोग वीरगति प्राप्त किये थे इस प्रकार कुल मिलाकर 395 लोगो ने देश के लिए प्राण न्योछावर कर दिया था

बलिदानियों का नाम

लच्छन सिंह, पल्टन सिंह,गुरूदयाल सिंह,धज्जू
सिंह (क्रान्ति के दमन की पराकाष्ठा के कारण घर से चले गये, लौटे नहीं),करिया
सिंह, तिलक सिह,विजाधर सिह, विशेशर सिंह,फेंकू सिंह,सिजोर सिंह, दीनदयाल सिंह,बसावन
सिंह,शिवलाल सिंह,राम किंकर सिंह,सालिग्राम  सिंह,शिवव्रत सिंह,देवी दयाल सिंह, डोमन सिंह भोंदू राम,सर्फराज अली,उमराव मिया,शीतल सिंह, बेनी माधव सिंह,अनमोल सिह, रामदरश सिंह,गती सिह,राम जनक सिंह, जतन सिंह, रामप्रसाद सिंह,रतना
सती, सुदामा कुवरी सती, बसन्ता सती,राधिका सती,अमीना सती, बउधा सती, डोमना सती।

पैना के बगावत के सरदार
ठाकुर सिंह, अयोध्या सिंह, अजरायल सिंह, विजाधर सिंह, माधो सिंह, देवीदयाल सिंह,
डोमन सिंह एवं तिलक सिंह।

395 बलिदानियों  87 वीरांगनाओं ने सरयू ने लगा दी थी छलांग

1857 का वह दौर जब ब्रितानी हुकूमत के आगे सर उठाने से बड़ी बड़ी रियासतें सहम जाया करती थी। उस समय भी पैना के क्रांतिवीरों ने दो माह तक ब्रिटेनी हुकूमत से अपने को आजाद घोषित करते हुए विद्रोह का विगुल फूंक दिया था। जिससे खार खाए ब्रिटिश हुक्मरानों ने गांव को तीन तरफ से घेरकर भीषण गोलाबारी करते हुए, मां भारती के सपूतों को मौत की नींद सुलाने की कोशिश किया। लेकिन पैना के रणबांकुरों ने ब्रिटिश हुकूमत की गोलियों के सामने सीने पर झेलकर मां भारती की स्वतंत्रता के लिए जो आधारशिला रखी नब्बे वर्ष बाद 1947 में उसी नींव पर स्वतंत्रता रूपी भव्य इमारत खड़ी हुई। 31 जुलाई का दिन देश की इतिहास में पैना के रणबांकुरों और वीरांगनाओं की शहादत के चलते अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
बरहज तहसील के गांव पैना में अंग्रेजों से लड़ते हुए 395 ग्रामीणों ने प्राणों की आहुति दी थी। गांव के सतीहड़ा घाट पर शहीदों की याद में बना शहीद स्मारक आज भी उन रणबांकुरों के बलिदान को बयां कर रहा है। बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में 31 मई 1857 को पैना गांव के वीरों ने भी अपने को स्वतंत्र घोषित किया। उसी दिन सरकारी मिशनरियों को मजबूरन बरहज से कब्जा हटाना पड़ा। दो जून 1857 को नरहरपुर के राजा हरी सिंह पैना के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रमुख ठाकुर सिंह से मुलाकात की। छह जून को ठाकुर सिंह, पलटन सिंह व राजा हरी सिंह ने बड़हलगंज पर धावा बोल थाना को कब्जे में लिया। घाघरा नदी पर अंग्रेजों के आवागमन को बंद करते हुए उनकी जहाजों के आवागमन पर रोक लगा दिया गया। इसके बाद इन लोगों ने मेजर होम (सिंगौली कम्पनी प्रमुख) को सलेमपुर से भगाते हुए अफीम कोठी पर कब्जा जमा लिया। 15 जुलाई को पैना के रणबांकुरों ने अंग्रेजों की रशद व गोला बारूद से भरी दो पानी की जहाजों को सतीघड़ा घाट पर रोक लिया।कर्नल रो क्राप्ट ने जल व थल मार्ग से पूरे गांव को घेर कर रक्तपात किया। उनकी याद में बलिदानियों, वीरांगनाओं की याद में शहीद स्मारक पर सभी शीश झुकाते हैं।

  • प्रकाश ओझा (editor)

    प्रकाश ओझा (editor)

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