अभिनेता अरशद वारसी व राजपाल यादव ने यही की थी फिल्म “घमासान” की शूटिंग
प्रकाश ओझा व शाहनवाज खान(बाँदा)
इसी जंगल मे डकैत ठोकिया ने एसटीएफ के 6 जवानों की कर दी थी हत्या
सैर कर दुनियां की गाफिल जिंदगानी फिर कहां, जिंदगी गर रही तो फिर ये जवानी कहां । राहुल सांकृत्यायन का ये शेर उन घुमक्कडों के लिए है लोगों के लिए है भ्रमण के साथ स्थानों की वहाँ के भौगोलिक परिस्थितियों,सामाजिक व्यवस्था के साथ सुंदरता आदि को जानना चाहते हैं।
घूमना मानसिक तनाव से मुक्त होने का बेहतर साधन भी है, बरसात का समय है ऐसे में पर्यटन प्रेमी प्राकृतिक या प्राचीन कलाकृतियों और उनकी सुंदरता का आनंद लेने के लिए घर से दूर हजारो किलोमीटर की यात्रा पर निकल जाते हैं
ऐसे में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के सरहदी इलाके के बांदा व चित्रकूट जनपद के बीच फैला कोल्हुआ जंगल जो कभी मिनी पाठा के नाम से जाना जाता था जहाँ करीब 1 दशक पूर्व डैकैतो की बन्दूखो की गरज जंगल मे शोर,जंगली जीवो में बेचैनी तथा स्थानीय निवासियों में भय पैदा करती थी लेकिन डकैतों के सफाए के बाद आज ये जंगल अशांति,भय और बेचैनी से आबाद हो गए है। पर्यटन की अपार संभावनाओ से भरे इस क्षेत्र में जैसे ही बरसात शुरू होती है इस बीरान जंगल की धरती हरे भरे पेड़ो से श्रृंगार कर आकर्षक लगने लगती है जंगली फूलो की भीनी खुश्बू,खामोशी के बीच बेपरवाह बहती नदियों की कलकल,झरनों की झंकार,पेड़ों पर बने घोंसलों जिनमे परिवार के साथ बतियाते पक्षियों कलरव आपको अकेलेपन में भी आनंदित करती है,यहां विचरण करते वन्य जीव कभी डराते हैं तो कभी रोमांच पैदा करते हैं। प्रतिदिन सैकड़ों क्षेत्रीय लोग पर्यटक बनकर यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती को देखने आते हैं।
दूर-दूर तक घने जंगलों में हजारों पेड़ों के बीच विचरण करना प्रकृति प्रेमियों के लिए सबसे खुशनुमा अहसास है, यहां पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं जरुरत है तो सिर्फ प्रकृति और कुदरत का अनुपम कृति के रूप में सैलानियों के लिए तैयार है कल-कल बहते झरने घने जंगल पक्षियों का कलरव बहती नदियाँ हरे भरे पहाड़ों का सौंदर्य लोगों को लुभा रहा है। यहां पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं जरुरत है तो सिर्फ पर्यटकों की और शासन-प्रशासन द्वारा उनको सुविधाएं व संसाधन मुहैया कराने की है
जंगल क्षेत्र में अन्य प्रमुख स्थल 1-बिल्हारिया मठ
बिल्हारिया मठ की ऊंचाई 22 मीटर है। इतिहासकारों के मुताबिक मठ का निर्माण चंदेल राजाओं ने कराया था। चंदेल युग के बाद यह बघेलों के संरक्षण में रहा। खजुराहो शैली में बना यह मठ अपने आप में अद्भुत है पुरातत्व विभाग के संरक्षण में यह मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
वीरगढ़ दुर्ग- दुर्ग की में एक देवी मंदिर है। प्रवेश द्वार वर्तमान समय में नष्ट हो चुका है। दुर्ग शिल्प की दृष्टि से वनीय दुर्ग एवं पर्वतीय दुर्ग श्रेणी में आता है। बघेल राजा अपनी सेना इसी दुर्ग में रखते थे। यहां स्थापित देवी मंदिर दस्यु दलों के लिए आराधना का केंद्र रहा है।चट्टानों पर बने हैं शैलचित्र- वीरगढ़ मंदिर से पूरब की ओर चुड़ैल गुफ़ा पहाड़ी की ऊंचाई पर शैलाश्रय मिलता है। इस शैलाश्रय के पास एक छोटा सा जल प्रपात है। चट्टानों पर गेरुआ रंग से कुछ चित्र बने हुए हैं। ये चित्र कलात्मक दृष्टि से बड़े सुंदर हैं, ये उत्तर पाषाण युग के हैं।
बाणगंगा नदी- जैसा कि नाम सुनने के बाद यह आभास होता है कि बाणगंगा नदी का सम्बंध बाण से ही होगा इस सम्बंध में यह मान्यता है कि यह नदी अर्जुन के बाण लगने से निकली है आज भी यह सदानीरा नदी की अविरल धारा बह रही है।
सकरो जल प्रपात-बाणगंगा से दक्षिण दिशा में की तरफ़ जाने पर सकरो जलप्रपात है इस जलप्रपात की ऊँचाई लगभग तीन सौ मीटर है लोगो का मत है कि यह शुक्राचार्य की तपोस्थली रही है कालांतर में अपभ्रंश के कारण इसका नाम सकरो पड़ा,फतेहगंज के गोबरी गोड़रामपुर से स्थानीय गोंड आदिवासियों को साथ लेकर जंगल के रास्ते इस प्राकृतिक स्थल तक पहुंच कर इसके सौंदर्य का आनंद लिया जा सकता है। बरसात के दिनों में यह अपने पूरे शबाब में रहता है।
मड़फा दुर्ग पड़ोसी जिला चित्रकूट के मानपुर के पास विंध्य पर्वत की हरी-हरी पहाड़ियों पर पांच मुख आठ भुजाओं वाले क्रोधित स्वरूप में विराजे शिव का धाम मडफा साहसिक पर्यटन प्रेमियों के लिए यह धार्मिक, ऐतिहासिक शानदार स्थल है।
हिल स्टेशन बनने से छू सकते हैं विकास केआयाम
प्राकृतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत के लिहाज से इस क्षेत्र की धरा बेहद सम्पन्न है। यहां पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं। तीन ओर विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की हरी-हरी पहाड़ियों से घिरा यह वन क्षेत्र शासन -प्रशासन की नज़रों में पर्यटन की दिशा में अछूता है वर्ना अगर दोनों ही जिलों के जिम्मेदार इस ओर ध्यान दे तो इसे एक हिल स्टेशन के रुप में संवारा जा सकता है जिससे पर्यटकों का आगमन बढ़ेगा वहीं स्थानीय लोगों को रोजगार का साधन उपलब्ध होगा ।
कैसे पहुंचें
चित्रकूट जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी
बांदा जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी दूर इस जंगल मे जाने के लिए किसी भी प्रकार के सामूहिक साधन नही चलते इसके लिए निजी साधनो के द्वारा इन धार्मिक पौराणिक व प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थानों पर पहुंचा जा सकता है!