
चित्रकूट-राजापुर क्षेत्र के छीबो स्थिति राम-जानकी मंदिर में प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी राम मंगल द्विवेदी ने अपने पिता स्व: शिवशंकर द्विवेदी की राह पर चलते हुए मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम, माता जानकी,हनुमानजी महाराज सहित अपने पिता को श्रीमद्भागवत कथा श्रवण कराने का आयोजन किया।
श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के चतुर्थ दिवस की कथा में कथा व्यास आचार्य रमन तिवारी ने कथा में शुकदेव जन्म, परीक्षित श्राप और अमर कथा का वर्णन करते हुए बताया कि “नारद जी के कहने पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा कि उनके गले में जो मुंडमाला है वह किसकी है तो भोलेनाथ ने बताया वह मुंड किसी और के नहीं बल्कि स्वयं पार्वती जी के हैं हर जन्म में पार्वती जी विभिन्ना रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते पार्वती ने हंसते हुए कहा हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही, आप क्यों नहीं
महादेव ने कहा हमने अमर कथा सुन रखी है पार्वती जी ने कहा मुझे भी वह अमर कथा सुनाइए शंकर जी पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया उसमें से श्री सुकदेव जी का प्राकट्य हुआ कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गई वह पूरी कथा श्री सुकदेव जी ने सुनी और अमर हो गए शंकर जी जब आभास हुआ तो सुकदेव जी के पीछे उन्हें मृत्युदंड देने के लिए दौड़े सुकदेव जी भागते भागते व्यास जी के आश्रम में पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए 12 वर्ष बाद श्री शुकदेव जी गर्भ से बाहर आए इस तरह श्री सुकदेव जी का जन्म हुआ

कथा व्यास ने भागवत पुराण की महिमा बताते हुए कहा कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बताती है राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं
कथा व्यास जी ने कहा कि भागवत के चार अक्षर का तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है इसके साथ साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार श्री नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुन्ती देवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती है क्यों कि दुख में ही तो गोविन्द का दर्शन होता है जीवन की अन्तिम बेला में भीष्म पितामह कृष्ण का दर्शन करते हुये अद्भुत देह का त्याग किया
परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा भगवान श्री शुकदेव उन्हे मुक्ति प्रदान करने के लिये कैसे प्रगट हुये इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन किया।
कथा व्यास ने यदुवंशी भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा का भी विस्तार से वर्णन किया कथा व्यास ने कहा कि
श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण का विग्रह स्वरुप है इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण स्वयं समाये हुये है उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से बढ़कर है कथा सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।

इस कथा को सुनने के लिए तमाम ग्रामवासी एवं क्षेत्रवासी उपस्थित रहे।