कोर्णाक के सूर्य मंदिर से पुराना है यह सूर्य मंदिर
महोबा-उत्तर प्रदेश का एक छोटा जिला है
आल्हा-उदल की नगरी के नाम से जाना जाने वाला महोबा चन्देलवंश की प्रचीन सैन्य राजधानी था।
जो अपने गौरवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध है
यह अपनी बहादुरी के लिए जाना जाता है वीर अल्हा और ऊदल की कहानियां भारतीय इतिहास में इसके महत्व को परिभाषित करती हैं
आल्हा ऊदल के साथ यहाँ का पान भी फेमस है।
सन 1995 में हमीरपुर जिले से अलग हुए महोबा में कई ऐसे कई स्थान हैं जो कि पिछले समय के जीवंत स्मृतियों को गौरवपूर्ण क्षण बना सकते हैं।
जैसे यहाँ का प्रचीन सूर्य मंदिर प्रसिद्ध है, कीरत सागर और कुलपहाड़ स्थित चंदेल कालीन यज्ञ स्थल है
रोचक बात यह है कि यहाँ जल संरक्षण के लिए विशाल तालाब है जिन्हें स्थानीय लोग तालाब नही बल्कि सागर कहते हैं
आज हम आपको दिखाएंगे हजारो वर्ष पुराना
महोबा का सूर्य मन्दिर जो उड़ीसा के कोर्णाक स्थित सूर्य मंदिर से पुराना है।
अगर बात करे दूरी की तो यह ऐतिहासिक विरासत मुख्यालय यानी कलेक्ट्रेट से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर रहेलिया गांव में स्थित है।
इस सूर्य मंदिर का निर्माण चंदेल राजा राहिल देव वर्मन ने 890 से 910 ई के मध्य कराया था। यह मंदिर नागर शैली में बनाया गया है
मंदिर से कुछ दूरी पर सूर्य कुंड का निर्माण कराया गया था। बताया जाता है कि सूर्य कुंड का पानी कभी नहीं सूखता है।
यहाँ के लोग लगातार यह मांग कर रहे हैं कि
सूर्य मंदिर को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कराया जाए तथा यूनेस्को प्रस्ताव भेजा जाए जिससे इस मंदिर को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कराया जाए।
जिससे बुंदेलखंड के इस जनपद को पर्यटन हब के रूप में विकसित करने में मदद मिलेगी और वीर भूमि में रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ेगीं। तत्कालीन जिलाधिकारी मनोज कुमार ने सूर्य मंदिर को संवारने के लिए प्रयास किया
उस प्रयास में सूर्य मंदिर में सुंदर लाइटिंग कराई गई और मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क का निर्माण और लाइटिंग ट्री का निर्माण भी कराया गया है। जिससे सूर्य मंदिर में लगातार पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो रहा है जिसमे उदाहरण के तौर पर आप मुझे देख सकते हैं क्योंकि मैं चित्रकूट से चलकर आपको इस ऐतिहासिक धरोहर को दिखाने का प्रयास कर रहा हूँ।
1203 ई. में मुगल शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की नजर इस सूर्य मंदिर में पड़ी तब उसने इस धरोहर का नामो-निशान मिटाने की ठानी। सूर्य मंदिर में खजाने की लालच में मुगल शासक ने पूरे मंदिर में तोडफ़ोड़ कराई लेकिन ये पूरी तरह से क्षतिग्रस्त नही हो पाया था। अवशेष आज भी रहेलिया सागर के तट पर और मंदिर के बगल में फैले है।